Madan Pati

इन वाणीयों में साहिब बता रहे हैं एक रंभ दूत गढ़ कालिंजर में पैदा होगा | (गढ़ कालिंजर में मदन पति का जन्म हुआ है) जो मेरे ज्ञान का विरोध करेगा |

  1. कबीर साहेब हमारे जैसे मानव थे उनका शरीर पांच तत्वों का था |
  2. सतलोक, अलख, अगम, अनामी आदि कोई लोक नहीं है |
  3. किसी भी अक्षर वाले नाम [मंत्र] का जाप नहीं करना है | (जबकि कबीर साहिब जिन-जिन को सतलोक लेकर गए, सबको दो अक्षर का (ओम-सोहम) एक अक्षर सारनाम- सार शब्द का जाप करने को दिया ) स्वास सिमरन करना त्रिकुटी में जाने को बताया |
  4. भक्ति विधि का विरोध करेगा, (स्वास का सिमरन नहीं करना है, त्रिकुटी में नहीं जाना है, दान सेवा नहीं करनी है आदि)

रंभ दूत का वर्णन

रंभ दूत कर करौं बखाना । गढ कालिंजर रोपिहे थाना॥
भगवान भगत वहिनाम धराई। बहुतक जीव लेई अपनाई ॥
जो जियरा होइहिं अंकूरी । सो बांचहि यम फन्दा तूरी॥
रंभ जोरावर यम बड़ द्रोही | तुमहि खंडि अरु खंडिहि मोही॥
आरती नरियर चौका संहारी | खंडिहि लोकदीप सबझारी ॥
ज्ञान ग्रन्थ औ खंडिहिं बीरा। कथहिं रमैनी काल गभीरा ॥
मोर वचन लेइ करे तकरारा । तेही फांस फँसे बहुसारा ॥
चारों धार कथे असरारा । हमार नाम ले करे पसारा ॥
आपहि आप कबीर कहाई। पांचतत्त्व बसि मोहि ठहराई॥
थापिहिं जीव पुरुष समभाई | खंडिहिं पुरुष जीव वर लाई॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

मदन पति ने गढ़ कालिंजर में अपना स्थान बनाया था | उनसे अब चार गद्दिया चल रही है | यह अपने नाम के साथ साहेब (भगवान) और दास दोनों लगाते हैं | कबीर साहिब ने बताया था “हे धर्मदास! ये रंभ दूत काल का भेजा हुआ दूत होगा, जो अपने नाम के साथ भगवान व भक्त दोनों लगाएगा और बहुत जीवो को अपना शिष्य बना कर काल के फंदे में फँसाएगा |

 वाणी:

जो जियरा होइहिं अंकूरी । सो बांचहि यम फन्दा तूरी॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

इस वाणी में कबीर साहब कह रहे हैं जो जीव भक्ति ज्ञान का अधिकारी होगा व ज्ञानी होगा, वह इसके जाल में नहीं फंसेगा अर्थात इसके जाल ‘यम फंदे’ को तोड़ देगा | मूर्ख ही इसके जाल में फंसेगा |

रंभदूत (मदन पति) का वर्णन

रंभ जोरावर यम बड़ द्रोही | तुमहि खंडि अरु खंडिहि मोही॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

भावार्थ: साहेब कबीर जी बता रहे हैं यह रंभ दूत तेरा और मेरा बहुत विरोध करेगा | तुझे अज्ञानी बताएगा तथा मुझे भी आम आदमी जैसा नाशवान बताएगा | (कबीर जी भी जन्म-मृत्यु में है, शब्द से आते हैं मर कर शब्द में चले जाते हैं) ऐसा झूठ बोलकर विरोध करेगा |

 वाणी:

आरती नरियर चौका संहारी | खंडिहि लोकदीप सबझारी ॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

साहेब समझा रहे हैं कि धर्मदास यह काल दूत आरती चौका का विरोध करेगा और ऊपर के लोकों (सतलोक, अलख लोक, अगमलोक, अनामी लोक) को झूठा बताएगा | (ऊपर कोई लोक नहीं है, केवल एक शब्द है, शब्द से ऊपर कुछ नहीं है | { यह बातें ऑडियो द्वारा एक काल दूत यूट्यूब पर डालता है| } जबकि कबीर जी ने अपनी अनेको वाणियों में ऊपर के लोकों का वर्णन विस्तार से बता रखा है और सृष्टि की रचना कबीर साहिब ने अपने सारशब्द (वचन) के द्वारा की है | सारशब्द को कबीर जी ने अपने मुख कमल से उच्चारकर पैदा किया है, जबकि काल दूत अपनी वीडियो में झूठ बोलकर गुमराह करता है:- “कबीर साहेब शब्द से आते हैं और शब्द में मिल जाते हैं, शब्द कबीर साहेब से पहले का है | शब्द कबीर जी से बड़ा है |”)

ऐसे अनेकों बार रंभ दूत के अनुयाई झूठा ज्ञान देकर भक्तों को गुमराह करते रहते हैं | इनके झांसे में नहीं आना है |

ज्ञान ग्रन्थ औ खंडिहिं बीरा। कथहिं रमैनी काल गभीरा ॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

यह काल दूत मेरे ज्ञान को गलत बताएगा, (जैसे दो अक्षर [ओम-सोहम] व सारनाम जो अक्षर में है उनका जाप करने से मना करेगा | ) स्वास के साथ नाम जाप न करने को कहेगा | (त्रिकुटी में नहीं जाना है) जबकि मैंने जो ज्ञान बताया है वह तीन बार में नाम मंत्र देना है और उनका जाप सुरति-निरति, मन, श्वास के साथ करने को कहा है | यह रंभदूत उसको झूठा बता कर अलग से अपना ज्ञान कथेगा जो सीधा नरक का रास्ता होगा |

वाणी:

मोर वचन लेइ करे तकरारा । तेही फांस फँसे बहुसारा ॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

यह रंभदूत मेरी वाणियों को न समझकर उन वाणियों को तोड़-मरोड़ कर पेश करेगा | इसके जाल में बहुत से अनजान अज्ञानी जीव फस जाएंगे |

वाणी:

चारों धार कथे असरारा । हमार नाम ले करे पसारा ॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

यह रंभदूत मेरे द्वारा बताई गई चारों भक्ति की विधि को गलत बताएगा (जैसे एक यज्ञ है धर्म की, दूजी यज्ञ है ध्यान | तीसरी यज्ञ हवन की, चौथी यज्ञ प्रणाम |  यह  काल का दूत अपने मिथ्या भाषणों में चिल्ला-चिल्लाकर कहता है: “दान नहीं देना है, ज्योति नहीं जलानी है, दंडवत प्रणाम नहीं करना है, आरती आदि नहीं करनी है” | चारों यज्ञो के करने से प्राणी कर्म हीन बना रहेगा, उसका मोक्ष कभी नहीं हो सकेगा |

वाणी:

आपहि आप कबीर कहाई। पांचतत्त्व बसि मोहि ठहराई॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

यह रंभदूत अपने आप यानी आत्मा को परमात्मा (कबीर साहेब) कहेगा | मुझे भी जन्म-मृत्यु (पांच तत्व) में बताएगा |

यह कालदूत नकली कबीरपंथी वीडियो के माध्यम से चिल्लाता है “आत्मा ही परमात्मा है, आत्मा भूल से अपना निजस्वरूप भूल गई है, जब अपना निजरूप देख लेने के बाद आत्मा को पता चलेगा कि तू ही सब कुछ है, तेरे ऊपर कुछ नहीं है | आत्मा ही सतनाम, सारनाम, अकहनाम और परमात्मा आदि है |”

वाणी:

थापिहिं जीव पुरुष समभाई | खंडिहिं पुरुष जीव वर लाई॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३२

इस पंक्ति में साहब बता रहे हैं कल रंभदूत जीव को पुरुष (परमात्मा) के बराबर का बताएगा और जीव को परमात्मा बताकर परमात्मा का नामोनिशान मिटाना चाहेगा |

वाणी:

कर्मी जीवहि पुरुष ठहराई । पुरुष गोइहिं आपु प्रगटाई ॥
जो यह जीव आपुहिं होई । नाना दुख कस मुगुते सोई॥
पांच तत्त्ववसि जीव दुख जावे। जीव पुरुष कहँ सम ठहरावे॥
अजर अमर पूरुषकी काया ।कला अनेक रूप नहिं छाया॥
अस यमदूत खण्ड देइ ताही । थापे जीव पुरुष यह आही।

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३३

ये अज्ञानी रंभदूत अथवा उसके चेले परमात्मा को भी कर्म बंधन में बताएंगे तथा जीव के समान ठहरा कर गुप्त करने की कोशिश करेंगे | अपने को यानी जीव को कर्ता बताएंगे | साहेब कहते हैं यदि जीव ही करता यानी सृष्टि का रचने वाला भगवान है तो यह जीव नाना प्रकार के दुःख 84 लाख योनियों में पड़कर क्यों भोग रहा है | पांच तत्वों के बस में पड़ा है |

साहेब कबीर जी कह रहे हैं पुरुष यानि परमात्मा का शरीर (काया) अजर-अमर है और काल दूत का शरीर तो नाशवान है | यह जीव को पुरुष बताकर गुमराह करके अपने फंदे में फंसाएगा |

तिस सागर झाई निज देखी। धोखा गहे निअच्छर लेखी।
बिनु दर्पण दरसे निज रूपा। धर्मनि यह गुरुगम्य अनूपा॥

-कबीर सागर, अनुराग सागर, पृष्ठ १३३

इस संसार में जो यह कहते हैं कि अपना निजरूप देख लो, वह धोखे में पड़ जाएगा | परमात्मा का निजी रूप आपको खुली आंखों से दिखाई देगा | गुरु जी की कृपा व बताई भक्ति विधि से ही संभव होगा |


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