Rig Veda Mandal 9 Sukt 1

Ved Mantras from Rig veda Mandal 9 Sukt 1

The following Rig Veda mantras have been explained below

  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 2
  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 8
  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 9
  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 10

Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 2

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 2

रक्षःऽहा । विश्वऽचर्षणिः । अभि । योनिम् । अयःऽहतम् । द्रुणा । सधऽस्थम् । आ । असदत् ॥

Translation by Dayanand Saraswati

  • हे परमात्मन् ! आप (रक्षोहा) राक्षसों के हनन करनेवाले हो, (विश्वचर्षणिः) सम्पूर्ण विश्व के द्रष्टा हो (अभियोनिम्) सबके उत्पत्तिस्थान हो (अयोऽहतम्) किसी शस्त्र-अस्त्र से छेदन नहीं किये जाते (द्रुणा) गतिशील और (सधस्थम्) मध्यस्थरूप से सर्वत्र (आसदत्) स्थिर हो ॥२॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 8

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 8

तम् । ईम् । हिन्वन्ति । अग्रुवः । धमन्ति । बाकुरम् । दृतिम् । त्रिऽधातु । वारणम् । मधु ॥

Translation by Dayanand Saraswati

  • (तम्) उस पुरुष को (अग्रुवः) उग्र गतियें (हिन्वन्ति) प्रेरणा करती हैं और (बाकुरम्) भासमान (दृतिम्) शरीर को वह पुरुष प्राप्त होता है, जिसमें (त्रिधातु) तीन प्रकार से (वारणम्) दुसरों का वारण करनेवाला (मधु) मधुमय शरीर मिलता है ॥८॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 9

  • When God appears as an infant, He is nourished by milk of maiden cows

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9

अभि । इमम् । अघ्न्याः । उत । श्रीणन्ति । धेनवः । शिशुम् । सोमम् । इन्द्राय । पातवे ॥

Translation by Dayanand Saraswati

  • (इमम्) उस (सोमम्) सौम्य स्वभाववाले श्रद्धालु पुरुष को (शिशुम्) कुमारावस्था में ही (अभि) सब प्रकार से (अघ्न्याः) अहिंसनीय (धेनवः) गौवें (श्रीणन्ति) तृप्त करती हैं (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य की (पातवे) वृद्धि के लिये। (उत) अथवा उक्त श्रद्धालु पुरुष को अहिंसनीय वाणियें ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये संस्कृत करती हैं (वाचं धेनुमुपासीत) शतप० ॥९॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 1 Mantra 10

  • God after appearing on this earth as an infant, says the truth without any fear and thus destroys all the misinformation.

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 10

अस्य । इत् । इन्द्रः । मदेषु । आ । विश्वा । वृत्राणि । जिघ्नते । शूरः । मघा । च । मंहते ॥

Translation by Dayanand Saraswati

  • (इन्द्रः) विज्ञानी पुरुष (अस्येत्) इसी भाव से (विश्वा) सम्पूर्ण (वृत्राणि) अज्ञानों को (जिघ्नते) नाश करता है (च) और इसी श्रद्धा के भाव से (शूरः) शूरवीर (मदेषु) अपनी वीरता के मद में मस्त होकर (मघा) ऐश्वर्य्यों को (मंहते) प्राप्त होता है ॥१०॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji


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