Rig Veda Mandal 9 Sukt 96

Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 16

  • Brahm, the knowledge giver of Vedas asks God to please reveal His name.

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16

सु॒ऽआ॒यु॒धः । सो॒तृऽभिः॑ । पू॒यमा॑नः । अ॒भि । अ॒र्ष॒ । गुह्य॑म् । चारु॑ । नाम॑ । अ॒भि । वाज॑म् । सप्तिः॑ऽइव । श्र॒व॒स्या । अ॒भि । वा॒युम् । अ॒भि । गाः । दे॒व॒ । सो॒म॒ ॥

Translation by Dayanand Saraswati

  • हे परमात्मन् ! (गुह्यम्) सर्वोपरि रहस्य (चारु) श्रेष्ठ (नाम) जो तुम्हारी संज्ञा है, (अभ्यर्ष) उसका ज्ञान करायें। आप (सोतृभिः, पूयमानः) उपासक लोगों से स्तूयमान हैं। (स्वायुधः) स्वाभाविक शक्ति से युक्त हैं और (सप्तिरिव) विद्युत् के समान (श्रवस्याभि) ऐश्वर्य्य के सम्मुख प्राप्त कराइये और (वायुमभि) हमको प्राणों की विद्या का वेत्ता बनाइये। (देव) हे सर्वशक्तिसम्पन्न परमेश्वर ! हमको (गाः) इन्द्रियों के (अभि वाजम्) नियमन का ज्ञाता बनाइये ॥१६॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 17

  • God appears as an infant
  • God gives his knowledge via his speech (Kavir Girbhi) i.e. Kabir Bani and becomes renowned as a poet but in reality He is Supreme God.
  • God's name si Kavir Dev (Kabir Sahib)

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17

शिशु॑म् । ज॒ज्ञा॒नम् । ह॒र्य॒तम् । मृ॒ज॒न्ति॒ । शु॒म्भन्ति॑ । वह्नि॑म् । म॒रुतः॑ । ग॒णेन॑ । क॒विः । गीः॒ऽभिः । काव्ये॑न । क॒विः । सन् । सोमः॑ । प॒वित्र॑म् । अति॑ । ए॒ति॒ । रेभ॑न् ॥

Translation by Dayanand Saraswati

  • (शिशुम्) “श्यति सूक्ष्मं करोति प्रलयकाले जगदिति शिशुः परमात्मा” उस परमात्मा को (जज्ञानम्) जो सदा प्रगट है, (हर्य्यतम्) जो अन्यन्त कमनीय है, उसको उपासक लोग (मृजन्ति) बुद्धिविषय करते हैं और (शुम्भन्ति) उसकी स्तुति द्वारा उसके गुणों का वर्णन करते हैं और (मरुतः) विद्वान् लोग (वह्निम्) उस गतिशील परमात्मा का (गणेन) गुणों के गणों द्वारा वर्णन करते हैं और (कविः) कवि लोग (गीर्भिः) वाणी द्वारा और (काव्येन) कवित्व से (कविः) उस कवि की स्तुति करते हैं। (सोमः) सोमस्वरूप (पवित्रम्) पवित्र वह परमात्मा कारणावस्था में अतिसूक्ष्म प्रकृति को (रेभन्, सन्) गर्जता हुआ (अत्येति) अतिक्रमण करता है ॥१७॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 18

  • God is in form and lives in third lok (tritiyam dham) i.e eternal place called Satlok.
  • God acquires the designation of a poet

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18

ऋषि॑ऽमनाः । यः । ऋ॒षि॒ऽकृत् । स्वः॒ऽसाः । स॒हस्र॑ऽनीथः । प॒द॒ऽवीः । क॒वी॒नाम् । तृ॒तीय॑म् । धाम॑ । म॒हि॒षः । सिसा॑सन् । सोमः॑ । वि॒ऽराज॑म् । अनु॑ । रा॒ज॒ति॒ । स्तुप् ॥

Very poor translation by Dayanand Saraswati

  • (सोमः) सोमस्वरूप परमात्मा (सिषासन्) पालन की इच्छा करता हुआ (महिषः) जो महान् है, वह परमात्मा (तृतीयं, धाम) देवयान और पितृयान इन दोनों से पृथक् तीसरा जो मुक्तिधाम है, उसमें (विराजम्) विराजमान जो ज्ञानयोगी है, उसको (अनु, राजति) प्रकाश करनेवाला है और (स्तुप्) स्तूयमान है। (कवीनाम्, पदवीः) जो क्रान्तदर्शियों की पदवी अर्थात् मुख्य स्थान है और (सहस्रनीथः) अनन्त प्रकार से स्तवनीय है। (ऋषिमनाः) सर्वज्ञान के साधनरूप मनवाला वह परमात्मा (यः) जो (ऋषिकृत्) सब ज्ञानों का प्रदाता (स्वर्षाः) सूर्य्यादिकों का प्रकाशक है, वह जिज्ञासु के लिये उपासनीय है ॥१८॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 19

  • God also lives in the fourth lok (turiyam dham)

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 19

च॒मू॒ऽसत् । श्ये॒नः । श॒कु॒नः । वि॒ऽभृत्वा॑ । गो॒ऽवि॒न्दुः । द्र॒प्सः । आयु॑धानि । बिभ्र॑त् । अ॒पाम् । ऊ॒र्मिम् । सच॑मानः । स॒मु॒द्रम् । तु॒रीय॑म् । धाम॑ । म॒हि॒षः । वि॒व॒क्ति॒ ॥

Very poor translation by Dayanand Saraswati

  • (अपामूर्मिम्) प्रकृति की सूक्ष्म से सूक्ष्म शक्तियों के साथ (सचमानः) जो संगत है और (समुद्रम्) “सम्यग् द्रवन्ति भूतानि यस्मात् स समुद्रः” जिससे सब भूतों की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय होता है, वह (तुरीयम्) चौथा (धाम) परमपद परमात्मा है, उसको (महिषः) “मह्यते इति महिषः”, महिष इति महन्नामसु नि. ३।१३। पठितम्। महापुरुष उक्त तुरीय परमात्मा का (विवक्ति) वर्णन करता है। वह परमात्मा (चमूसत्) जो प्रत्येक बल में स्थित है, (श्येनः) सर्वोपरि प्रशंसनीय है और (शकुनः) सर्वशक्तिमान् है। (गोविन्दुः) यजमानों को तृप्त करके जो (द्रप्सः) शीघ्र गतिवाला है (आयुधानि, बिभ्रत्) अनन्तशक्तियों को धारण करता हुआ इस संपूर्ण संसार का उत्पादक है ॥१९॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 20

  • God is in form
  • God leads like a leader

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20

मर्यः॑ । न । शु॒भ्रः । त॒न्व॑म् । मृ॒जा॒नः । अत्यः॑ । न । सृत्वा॑ । स॒नये॑ । धना॑नाम् । वृषा॑ऽइव । यू॒था । परि॑ । कोश॑म् । अर्ष॑न् । कनि॑क्रदत् । च॒म्वोः॑ । आ । वि॒वे॒श॒ ॥

Very poor translation by Dayanand Saraswati

  • वह परमात्मा (यूथा, वृषेव) जिस प्रकार एक सङ्घ को उसका सेनापति प्राप्त होता है, इसी प्रकार (कोशम्) इस ब्रह्माण्डरूपी कोश को (अर्षन्) प्राप्त होकर (कनिक्रदत्) उच्चस्वर से गर्जता हुआ (चम्वोः पर्य्याविवेश) इस ब्रह्माण्डरूपी विस्तृत प्रकृतिखण्ड में भली-भाँति प्रविष्ट होता है और (न) जैसे कि (मर्यः) मनुष्य (शुभ्रस्तन्वं मृजानः) शुभ्र शरीर को धारण करता हुआ (अत्यो न) अत्यन्त गतिशील पदार्थों के समान (सनये) प्राप्ति के लिये (सृत्वा) गतिशील होता हुआ (धनानाम्) धनों के लिये कटिबद्ध होता है, इसी प्रकार प्रकृतिरूपी ऐश्वर्य्य को धारण करने के लिये परमात्मा सदैव उद्यत है ॥२०॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji


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