Rig Veda Mandal 9 Sukt 86

Mantras from Rig Veda Mandal 9 Sukt 86

  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 26
  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 27
  • Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 28

Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 26

  • God Kavir comes and meets his deserving souls

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26

इन्दुः । पुनानः । अति । गाहते । मृधः । विश्वानि । कृण्वन् । सुऽपथानि । यज्यवे । गाः । कृण्वानः । निःऽनिजम् । हर्यतः । कविः । अत्यः । न । क्रीळन् । परि । वारम् । अर्षति ॥

Translation by Dayanand Saraswati

(यज्यवे) यज्ञ करनेवाले यजमानों के लिये परमात्मा (विश्वानि सुपथानि) सब रास्तों को (कृण्वन्) सुगम करता हुआ (मृधः) उनके विघ्नों को (अतिगाहते) मर्द्दन करता है और (पुनानः) उनको पवित्र करता हुआ और (हर्य्यतः) वह कान्तिमय परमात्मा (कविः) सर्वज्ञ (अत्यो न) विद्युत् के समान (क्रीळन्) कीड़ा करता हुआ (वारं) वरणीय पुरुष को (पर्य्यर्षति) प्राप्त होता है ॥२६॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

धार्मिक अनुष्ठान करने वाले भक्तों के लिए परमात्मा उनके रस्ते को साफ़ कर देता है और उनके संकटों को नष्ट कर देता है, उन भक्तों को पवित्र करता हुआ, हलके तेज पुंज का रूप धारण कर के वह परमात्मा कवीर देव बिजली जैसी गति से, तेजी से चलता हुआ श्रेष्ठ आत्माओं को आ कर मिलता है।

Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 27

  • God is in form and is present in Satlok

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 27

असश्चतः । शतऽधाराः । अभिऽश्रियः । हरिम् । नवन्ते । अव । ताः । उदन्युवः । क्षिपः । मृजन्ति । परि । गोभिः । आऽवृतम् । तृतीये । पृष्ठे । अधि । रोचने । दिवः ॥

Translation by Dayanand Saraswati

(उदन्युवः) प्रेम की (ताः) वे (शतधाराः) सैकड़ों धारायें (असश्चतः) जो नानारूपों में (अभिश्रियः) स्थिति को लाभ कर रही हैं, वे (हरिं) परमात्मा को (अवनवन्ते) प्राप्त होती हैं। (गोभिरावृतं) प्रकाशपुञ्ज परमात्मा को (क्षिपः) बुद्धिवृत्तियें (मृजन्ति) विषय करती हैं। जो परमात्मा (दिवस्तृतीये पृष्ठे) द्युलोक के तीसरे पृष्ट पर विराजमान है और (रोचने) प्रकाशस्वरूप है। उसको बुद्धिवृत्तियें प्रकाशित करती हैं |॥२७॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 28

  • God is in form and is the first one to reside in his abode

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 28

तव । इमाः । प्रऽजाः । दिव्यस्य । रेतसः । त्वम् । विश्वस्य । भुवनस्य । राजसि । अथ । इदम् । विश्वम् । पवमान । ते । वशे । त्वम् । इन्दो इति । प्रथमः । धामऽधाः । असि ॥

Translation by Dayanand Saraswati

(तव, दिव्यस्य, रेतसः) तुम्हारे दिव्य सामर्थ्य से (इमाः प्रजाः) ये सब प्रजा उत्पन्न हुई हैं। (त्वं) तुम (विश्वस्य भुवनस्य) सम्पूर्ण सृष्टि के (राजसि) राजा होकर विराजमान हो। (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (इदं विश्वं) ये सम्पूर्ण संसार (ते वशे) तुम्हारे वश में है (अथ) और (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (त्वं प्रथमं) तुम ही पहले (धामधाः) सबके निवासस्थान (असि) हो ॥२८॥

Correct Translation by Sant Rampal Ji

त्वं प्रथमं धामधाः - परमात्मा आप साकार हो और अपने धाम में सब से पहले निवास करने वाले हो।  


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